लिंग निर्धारण के लिए खून की जांच भरोसेमंद साबित हो सकती है। कई शोधों में यह बात सामने आयी है कि बच्चे के लिंग के निर्धारण के लिए रक्त के नमूने की जांच काफी है। रक्त की जांच करके बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जा सकता है।
ब्लड टेस्ट के जरिए सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाया जा सकता है और इससे भ्रूण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यह सबसे कम समय में होने वाल टेस्ट है, जबकि अल्ट्रासाउंड के लिए कम से कम गर्भधारण के बाद 11 हफ्ते का समय गिना जाता है। अल्ट्रासाउंड की तुलना में यह ज्यादा भरोसेंमद जांच है। आइए हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
क्या कहता है शोध
अमेरिका में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि गर्भवती महिलाओं के खून का डीएनए परीक्षण करने से सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाया जा सकता है और इससे भ्रूण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। अध्ययन के परिणाम ‘अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ की पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इसमें कहा गया है ‘शिशु के लिंग का पता करने के लिए महिला के रक्त से कोशिका मुक्त भ्रूण, डीएनए का परीक्षण, मूत्र परीक्षण या सोनोग्राम की तुलना में काफी सटीक और गर्भवती महिला की गर्भाशय जांच से अधिक सुरक्षित है।’
गर्भस्थ शिशु का अल्ट्रासाउंड भी 11 से 14 हफ्ते का होने पर ही किया जा सकता है लेकिन रक्त के डीएनए परीक्षण के जरिए सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु का भी लिंग ज्ञात किया जा सकता है। यह डीएनए परीक्षण गर्भवती महिला के गर्भ की जांच करने से अधिक सुरक्षित है। गर्भाशय जांच में भ्रूण के इर्द गिर्द की थैली से तरल पदार्थ लिया जाता है जिसमें कभी- कभार गर्भपात की आशंका रहती है। अध्ययन में कहा गया है ‘भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए भरोसेमंद विकल्प की उपलब्धता से गर्भपात की आशंका कम होगी और इस विधि का उन गर्भवती महिलाओं द्वारा स्वागत किया जाएगा जिन्हें भ्रूण के विकृति युक्त होने का जोखिम रहता है।’
अन्य जांच
गर्भस्थ शिशु के लिंग का निर्धारण करने के लिए ब्लड टेस्ट के अलावा कई अन्य तरीके भी हैं। अल्ट्रासाउंड, डीएनए का परीक्षण, मूत्र परीक्षण या सोनोग्राम का भी प्रयोग किया जा सकता है। इन सबमें सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाने वाला यंत्र है अल्ट्रासाउंड। अल्ट्रासाउंड की तकनीके के जरिए लिंग का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है। इन जांचों का फायदा भी है। इसके जरिए आप बच्चे के विकास और स्वास्थ्य की जानकारी कर सकते हैं। कुछ मामलों में यह सुरक्षित होता है, लेकिन अल्ट्रासाउंड के दौरान निकलने वाली किरणें बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं। इसलिए ऐसी जांच कराने से बचना चाहिए।
हालांकि लिंग निर्धारण में पूरी तरह से पिता की भूमिका होती है। पिता के गुणसूत्रों से ही लड़का और लड़की का निर्धारण होता है, महिला में केवल एक्स गुणसूत्र होता है जबकि पुरुष में एक्स और वाई गुणसूत्र होते हें। यदि एक्स-एक्स गुणसूत्र मिलें तो लड़का और यदि महिला का एक्स और पुरुष का वाई गुणसूत्र मिलें तो लड़की पैदा होती है।
ब्लड टेस्ट के जरिए सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाया जा सकता है और इससे भ्रूण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यह सबसे कम समय में होने वाल टेस्ट है, जबकि अल्ट्रासाउंड के लिए कम से कम गर्भधारण के बाद 11 हफ्ते का समय गिना जाता है। अल्ट्रासाउंड की तुलना में यह ज्यादा भरोसेंमद जांच है। आइए हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
क्या कहता है शोध
अमेरिका में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि गर्भवती महिलाओं के खून का डीएनए परीक्षण करने से सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाया जा सकता है और इससे भ्रूण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। अध्ययन के परिणाम ‘अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ की पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इसमें कहा गया है ‘शिशु के लिंग का पता करने के लिए महिला के रक्त से कोशिका मुक्त भ्रूण, डीएनए का परीक्षण, मूत्र परीक्षण या सोनोग्राम की तुलना में काफी सटीक और गर्भवती महिला की गर्भाशय जांच से अधिक सुरक्षित है।’
गर्भस्थ शिशु का अल्ट्रासाउंड भी 11 से 14 हफ्ते का होने पर ही किया जा सकता है लेकिन रक्त के डीएनए परीक्षण के जरिए सात हफ्ते के गर्भस्थ शिशु का भी लिंग ज्ञात किया जा सकता है। यह डीएनए परीक्षण गर्भवती महिला के गर्भ की जांच करने से अधिक सुरक्षित है। गर्भाशय जांच में भ्रूण के इर्द गिर्द की थैली से तरल पदार्थ लिया जाता है जिसमें कभी- कभार गर्भपात की आशंका रहती है। अध्ययन में कहा गया है ‘भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए भरोसेमंद विकल्प की उपलब्धता से गर्भपात की आशंका कम होगी और इस विधि का उन गर्भवती महिलाओं द्वारा स्वागत किया जाएगा जिन्हें भ्रूण के विकृति युक्त होने का जोखिम रहता है।’
अन्य जांच
गर्भस्थ शिशु के लिंग का निर्धारण करने के लिए ब्लड टेस्ट के अलावा कई अन्य तरीके भी हैं। अल्ट्रासाउंड, डीएनए का परीक्षण, मूत्र परीक्षण या सोनोग्राम का भी प्रयोग किया जा सकता है। इन सबमें सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाने वाला यंत्र है अल्ट्रासाउंड। अल्ट्रासाउंड की तकनीके के जरिए लिंग का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है। इन जांचों का फायदा भी है। इसके जरिए आप बच्चे के विकास और स्वास्थ्य की जानकारी कर सकते हैं। कुछ मामलों में यह सुरक्षित होता है, लेकिन अल्ट्रासाउंड के दौरान निकलने वाली किरणें बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं। इसलिए ऐसी जांच कराने से बचना चाहिए।
हालांकि लिंग निर्धारण में पूरी तरह से पिता की भूमिका होती है। पिता के गुणसूत्रों से ही लड़का और लड़की का निर्धारण होता है, महिला में केवल एक्स गुणसूत्र होता है जबकि पुरुष में एक्स और वाई गुणसूत्र होते हें। यदि एक्स-एक्स गुणसूत्र मिलें तो लड़का और यदि महिला का एक्स और पुरुष का वाई गुणसूत्र मिलें तो लड़की पैदा होती है।

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